सौतेला बाप ( भाग - 7 )
अध्याय - ७
आधी रात बीत गई , और ब्याह संपन्न हो गया। सभी औरते फुलवा को लिए घर के अंदर चली गई और बाहर मधुआ अपने साथियों के साथ बैठा मिठाई खाने में लगा था। अपनी माई को अंदर जाते देख वो दौड़ा फुलवा के पास गया , मगर औरते उसे फुलवा के कोठर में जाने की अनुमति नहीं दी।
" माई है हमरी , मना क्यू करती हो?"
" नादान बालक , आज तोरी माई और बाप का खास रात है तू अंदर नही सो सकत। जा बाहर जाकर आदमियों के बीच सो जा !"
मधुआ गुस्से में बाहर आया और अपने सौतेले बाप को देख एक खटिए पर बैठ गया। उसके साथी उसके पास आकर बैठ गए।
" देखा... तोरी माई को आज से ही अलग करने लगा!"
" वो हमरी माई है....उसके बिना हमका नींद नाही आवत!" मधुआ लगभग रुआसा होकर आंखे मलते हुए बोला।
उसके साथी उसे अपने साथ सोने को बोलते है क्युकी आज तो उसे फुलवा के कोठर में जाने की अनुमति कतई नहीं मिलने वाली थी।
गांव के बड़े - बूढ़े और परधान के बीच बैठा मधुआ का सौतेला बाप खाना खा रहा था। और सभी उसके आव भगत में लगे थे।
" खाना कईसा है बाबू?" गांव का परधान पूछा।
मधुआ का सौतेला बाप खाते हुए बोला - बहुत अच्छा है।
सभी खुश हो जाते है कि दुलहे को खाना पसंद आ गया।
" जाओ बाबू घर मा जाओ....बहुत रात हो गई थक गए होगे!" एक बूढ़ी काकी आती हुई बोली।
मधुआ का सौतेला बाप उठा और घर के भीतर चला गया। वही अंदर बैठी फुलवा को सभी औरते हिदायत दे रही थी कि कलुआ के साथ रिश्ते को भूलकर अब नए मास्टर बाबू को पति परमेश्वर मान कर सेवा करे। वो पढ़ा लिखा है , फुलवा गांव की गंवार लड़की है तो उसे सब कुछ समझाना होगा कि कैसे वो पति को खुश करे। सभी औरते को जैसे आहट होती है कि मधुआ का सौतेला बाप अंदर आ रहा सभी हंसी ठिठोली करती हुई उठती है और बाहर की ओर चली जाती है।
बाहर गांव का परधान घर के अगल - बगल ही खाट बिछाए सभी आदमियों और लडको के बीच सोने की तैयारी करवा रहे थे , ताकि बियाह वाले घर में चोर डाकू का नज़र न पड़ जाए। छोटे बच्चे औरतों के साथ आंगन में चटाई बिछाए सोए थे। मधुआ भी आंगन में खुले आसमान के तारों को देखते हुए लेटा था। उसके सभी दोस्त सो चुके थे मगर वो आंखो में नमी लिए जगा था।उसे अपने माई की याद सता रही थी वो सामने वाले कोठर को ताक रहा था कि कब उसकी माई उसे दिखेगी।
फुलवा अपने पति के अंदर आते ही उसके पांव में गिर जाती है , मधूआ का सौतेला बाप फुलवा को उठाया।
" ये क्या कर रही तुम?"
" सोहाग की सेवा और आशीर्वाद....आप हम जैसी अपशगुनी विधवा से बियाह किए आप देवता है!"
" विधवा होना अपशगुन होता है?"
" पिछले जन्म के करम थे ईहे खातिर अपने पति को खा गए हम"
" फुलवा....जानती हो तुमसे ब्याह करने के लिए क्यू मैं तैयार हुआ?"
फुलवा अपने नए पति की ओर अनजान नजर से देखती है।
" क्युकी तुम मात्र बाइस साल की लड़की हो....और एक पांच साल का बच्चा है तुम्हारा.... मधुआ को एक अच्छा पढ़ा लिखा इंसान बनाना चाहता हू!"
फुलवा हाथ जोड़ बोली " बहुत - बहुत आभार...आप हमरे मधुआ के बारे में इतना सोचे। बरना हम चिंता में थे कि नया पति हमरे मधुआ को सौतेला न माने!"
" कहा़ है मधुआ?"
फुलवा हैरत से अपने नए पति की ओर देखी।
" आज...आज मधुआ ईहा कइसे रहेगा? काकी बाहर सुलाई है उसे!"
" क्यू नही रह सकता मधुआ हमारे कमरे में?"
" आज सोहागरात है...आप गुस्सा हो जाते मधुआ को ईहा देख तो?"
फुलवा का नया पति कोठर का दरवाजा खोला और बाहर निकल गया। फुलवा घबरा कर बाहर की ओर भागी। और उससे याचना करने लगी कि वो अंदर चले।
" हमरी कोई बात बुरी लगी बाबू? हम नाही बोलेंगे!"
फुलवा की आवाज सुन सभी औरते जग गई , बाहर से आदमी भी अंदर आ गए। पर मधुआ एक कोने में चटाई पर सोया हुआ था।
" का हुआ...?" गांव के डाकिया बाबू पूछे।
" अरे फुलवा ही कछु की होगी , सोहाग रात के दिन पति बाहर आ गया। करम फुट गए पहले ही पति को खाई तो चैन न पड़ा आज हम लोग इसका संसार बसा दिए तो देखो उजाड़ रही !"
" बोल का कही बाबू से?"
मगर फुलवा कहती तो क्या कहती। वो तो बस मास्टर बाबू के सवाल का जवाब ही दे रही थी इतने में बाबू गुस्सा होकर बाहर चले आए।
कहानी जारी है..!!!
RISHITA
06-Aug-2023 10:14 AM
Nice part
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Mithi . S
09-Nov-2022 11:29 AM
बहुत सुंदर 👌
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Sachin dev
08-Nov-2022 06:26 PM
Nice 👌
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